Junoon Aisa JO Socha Kar Dikhaya



                             Junoon Aisa JO Socha Kar Dikhaya

दोस्तों आज की जो सच्ची घटना में आपको बताने जा रहा हूं उसको सुनने के बाद में आपको 


उससे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा

असल में यह सच्ची घटना है दशरथ मांझी की, जिन्हें आज पूरी दुनिया जानती है

दशरथ मांझी  बिहार के गया जिले में एक गांव है गहलोर, वहां पर  अपनी पत्नी के साथ रहा करते थे दशरथ मांझी बहुत गरीब परिवार से थे अपनी पत्नी और बच्चों के साथ गुजर-बसर कर रहे थे,

पहाड़ पर लकड़िया या पत्थर तोड़कर अपने जीवन का भरण पोषण करते थे,

दशरथ और फाल्गुनी देवी एक दूसरे से बेपनाह बहुत मोहब्बत करते थे और यूं ही हंसी खुशी उनकी जिंदगी के दिन कट रहे थे

एक दिन जब दशरथ मांझी पहाड़ पर लकड़ियां काट रहे थे तब उनकी पत्नी फाल्गुनी उनके लिए पानी लेकर आ रही थी पहाड़ पर पैर फिसलने से गिर गई और उनको बहुत गहरी चोट लगी

पत्थर की चोट लगने की वजह से वह गंभीर रूप से घायल हो गई उनको तुरंत चिकित्सा की जरूरत थी लेकिन अस्पताल उनके गांव से 70 किलोमीटर दूर था उस वक्त ऐसे कोई साधन भी नहीं होते थे

जिससे कि वह अपनी पत्नी को तुरंत अस्पताल पहुंचा सकें घायल फाल्गुनी देवी ने इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया 24 साल के दशरथ मांझी अपनी पत्नी को अपने सामने तड़पते हुए दम तोड़ते देखते रहे वह लाचार थे चाह कर भी कुछ नहीं कर सके दशरथ मांझी को अपनी पत्नी का इस तरह तड़पते हुए बिना इलाज के दम तोड़ देना अंदर तक झकझोर गया

वह बहुत दुखी थे, वह उस पहाड़ की तरफ देखते और सोचते काश यह पहाड़ ना होता तो फाल्गुनी आज जिंदा होती है,

उसने उस पहाड़ को फिर देखा और सोचा अगर यह यूं ही खड़ा रहा तो पता नहीं कितने लोगों की जान लेगा दशरथ मांझी ने पहाड़ को चकनाचूर करके उसको अपनी जगह से हटाकर रास्ता बनाने का निश्चय कर लिया  

दशरथ मांझी को उस पहाड़ से इतनी नफरत हुई कि उसने उस पहाड़ को ही रास्ते से हटा कर नया रास्ता बनाने की ठान ली ,

लेकिन यह काम इतना आसान नहीं था पत्नी के बाद उसके बच्चों की जिम्मेदारी और रोजी-रोटी जिम्मेदारी भी अब उनके पास थी ,

उनके पास इतने पैसे भी नहीं थे कि पहाड़ को तोड़ने के लिए छेनी हथोड़ा खरीद सके,

 आखिरकार उसने अपनी बकरी को बेचकर उस पैसे से हथोड़ा और छेनी खरीदा

 और निकल पड़ा अपने जुनून अपने जज्बे के साथ उस पहाड़ को हटाने के लिए

 गांव के लोग उसको पागल कहने लगे कि भला एक आदमी कैसे पहाड़ को हटा सकता है 

लेकिन दशरथ बिना किसी की परवाह किए अपने काम में जुटे रहे कई बार तो दशरथ के पास खाने को कुछ नहीं होता लेकिन दशरथ अपने इरादे से जरा भी नहीं डिगा

24 साल का नौजवान अपनी जवानी में 1-2 साल नहीं पूरे 22 साल तक अपने मिशन में लगा रहा वह 24 साल का नौजवान 22 साल बाद 46 साल का हो गया और 22 सालों की कड़ी मेहनत के बाद आखिर वह दिन आ गया जब उसने 360 फुट लंबी 30 फुट चौड़ा और 25 फुट ऊंचे पहाड़ को हटाकर वहां से रास्ता बना दिया अब गहलोर गांव से शहर की दूरी जो कि 70 किलोमीटर थी सिर्फ 7 किलोमीटर रह गई

दशरथ मांझी ने हजारों लोगों के लिए जिंदगी को आसान बना दिया दशरथ मांझी ने अपने जुनून और मेहनत के अथक परिश्रम की वजह से उस पहाड़ को रास्ते से हटा दिया

जिस इंसान के पास ना दौलत थी ना कोई साधन थे यहां तक कि खाने के लिए दो वक्त की रोटी भी नहीं थी उसने मेहनत और जुनून की  बदौलत एक पहाड़ को काट  कर रास्ता बना दिया यह कहानी मैं जब भी सुनता हूं सोचने पर मजबूर हो जाता हूं हमारे सामने ऐसी मिसाल होने के बावजूद हम इनसे अगर प्रेरणा नहीं रह सकते तो फिर हम जिंदगी में कुछ नहीं कर सकते

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